Tuesday, 20 August 2013

creator paythagoras Sage baudhayan

पायथागोरस प्रमेय नहीं, बोधायन प्रमेय कहिये ! - Baudhayana's Theorem

पायथागोरस प्रमेय छोटी क्लास से ही बच्चो को रटाया जाने लगता है जबकि यह कम लोग ही जानते होंगे कि वास्तव में‌ इसके रचयिता पायथागोरस नहीं वरन ऋषि बौधायन हैं, जिऩ्होंने यह रचना पायथागोरस से लगभग 250 वर्ष पहले की थी।

ऐसा भी‌ नहीं है कि पायथागोरस ने इसकी रचना स्वतंत्र रूप से की हो अपितु सनातनी ग्रन्थ शुल्ब सूत्र के अध्यन से ही प्राप्त की थी।

इस प्रमेय का वर्णन शुल्ब सूत्र (अध्याय १, श्लोक १२) में मिलता है।

शुल्बसूत्र, स्रौत सूत्रों के भाग हैं शुल्बसूत्र ही भारतीय गणित के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले प्राचीनतम स्रोत हैं। शुल्ब सूत्र में यज्ञ करने के लिये जो भी साधन आदि चाहिये उनके निर्माण या गुणों का वर्णन है। यज्ञार्थ वेदियों के निर्माण का परिशुद्ध होना अनिवार्य था। अत: उनका समुचित वर्णन शुल्ब सूत्रों में‌ दिया गया है।

निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं:

1. आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र

2. बौधायन शुल्ब सूत्र

3. मानव शुल्ब सूत्र

4. कात्यायन शुल्ब सूत्र

5. मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र ( मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है)

6. वाराह (पाण्डुलिपि रूप में)

7. वधुल (पाण्डुलिपि रूप में) हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)

भिन्न आकारों की वेदी‌ बनाते समय ऋषि लोग मानक सूत्रों (रस्सी) का उपयोग करते थे । ऐसी प्रक्रिया में रेखागणित तथा बीजगणित का आविष्कार हुआ।

शुल्बसूत्र का एक खण्ड बौधायन शुल्ब सूत्र है। बौधायन शुल्ब सूत्र में ऋषि बौधायन ने गणित ज्यामिति सम्बन्धी कई सूत्र दिए |

बौधायन का एक सूत्र इस प्रकार है:

दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जु: पार्श्वमानी तिर्यंगमानी च यत्पृथग्भूते कुरुतस्तदुभयं करोति।
(बो। सू० १-४८)

एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं।

अर्थात

किसी आयत के विकर्ण द्वारा व्युत्पन्न क्षेत्रफल उसकी लम्बाई एवं चौड़ाई द्वारा पृथक-पृथक व्युत्पन्न क्षेत्र फलों के योग के बराबर होता है।

यहीं तो पायथागोरस का प्रमेय है। स्पष्ट है कि इस प्रमेय की जानकारी भारतीय गणितज्ञों को पायथागोरस के पहले से थी।

जो प्रमेय पायथागोरस ने दी वो है :

The sum of the areas of the two squares on the legs (a and b)
equals the area of the square on the hypotenuse (c).

ज्यामितिक साहित्य मूलतः ऋग्वेद से उत्पन्न हुआ है जिसके अनुसार अग्नि के तीन स्थान होते हैं- वृत्ताकार वेदी में गार्हपत्य, वर्गाकार में अंह्यान्या तथा अर्धवृत्ताकार में दक्षिणाग्नि। तीनों वेदियों में से प्रत्येक का क्षेत्रफल समान होता है। अतः वृत्त वर्ग एवं कर्णी वर्ग का ज्ञान भारत में ऋग्वेद काल में था। इन वेदियों के निर्माण के लिए भिन्न-भिन्न ज्यामितीय क्रियाओं का प्रयोग किया जाता था। जैसे किसी सरल रेखा पर वर्ग का निर्माण, वर्ग के कोणों एवं भुजाओं का स्पर्च्च करते हुए वृत्तों का निर्माण, वृत्त का दो गुणा करना। इस हेतु इनका मान ज्ञात होना जरूरी था।

इनके अतिरिक्त उऩ्होंने २ के वर्गमूल निकालने का सूत्र भी दिया है, जिससे उसका मान दशमलव के पाँच स्थान तक सही आता है तथा कई अन्य ज्यामितीय रचनाओं के क्षेत्रफल ज्ञात करने, ज्यामितीय आकारों के बारे तथा एक ज्यामितीय आकार को दूसरे समक्षेत्रीय आकार में परिवर्तित करना आदि |

ये है सनातनी भारत का गणित ज्ञान... जय हिन्द...
Those bodhayan paythagoras theorem, theorem! - Baudhayana's Theorem

The children from the small class rataya paythagoras theorem seems to be moving while it's less people would know as not exactly its
creator paythagoras Sage baudhayan, approximately 250 years ago paythagoras jinhonne composed it.

It is not as if composing it independently of paythagoras but the Orthodox granth shulb had gained from these formulas.

Description of the theorem shulb Sutra (Chapter 1, verses 12).

Shulbasutra, sraut are shulbasutra part of the Indian math formulas relating the oldest information source. shulb in the formula must be the means of yajna etc. Description of their manufacture or properties. yagyarth must be precise to build altars. hence their proper description shulb formulas.

The following shulb are available at this time formula:

1. apastamb shulb formula

2. baudhayan shulb formula

3. Human shulb formula

4. katyayan shulb formula

5. maitrayniya shulb formulas (human shulb formula to some extent equality)

6. were (for)

7. woodhall (for) hiranyakeshin (apastamb shulb resembles a formula)

When you create a Sage altar of different sizes people use standard sources (rope). The invention of geometry and algebra in such a process.

Shulbasutra is a section of shulb formula shulb formula baudhayan baudhayan by baudhayan Sage math. geometry gave several threads on |

Baudhayan a formula as follows:

Dirghachturashrasyakshnaya yatprithagbhute parshvamani tiryangamani kurutastadubhyan karoti f rajju:.
(Bo. su0 1-48)

The diagonal of a rectangle area creates a gathered as its length and width individually.

I.e.

Derived by the diagonal of a rectangle area by its length and width separately derived area is equal to the sum of the fruit.

This is so paythagoras's theorem is the theorem of information. Indian mathematicians to paythagoras already.

The theorem is given by paythagoras:

The sum of the areas of the two squares on the legs (a and b)
equals the area of the square on the hypotenuse (c).

Geometric originated from Rigveda which is basically literature for fire are three space-circular altar in anhyanya and ardhavrittakar in the garhapatya, in square dakshinagni. each of the three altars in the area is the same. therefore, the knowledge of India and the circle class in the Rigveda period karni was in class these altars to build using different geometrical actions. creating a simple line like classSlide the square angles and build sparchch of the circles, the circles are to multiply two values must be known.

Find the square root of 2, remove excess unhonne formulae, so that its value comes right up to five decimal places and many other geometrical shapes geometric compositions are known, area of samkshetriya and a change in size to other geometric shapes etc.

This is the Orthodox India's math knowledge. Jai hind ...

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